हर साँस हर-नफ़स तिरी इक जुस्तुजू लगे मैं हू कहाँ कि तू ही फ़क़त चार-सू लगे साँसों में अब महकती है ख़य्याम की ग़ज़ल हर बात मेरी तुझ को छलकता सुबू लगे उतरी हुई क़बा है मिरी नीला आसमाँ अश्कों से मेरे धरती तिरी बा-वज़ू लगे आँखों से जिस को देख रहे हैं कुछ और है महसूस हो रहा है सो बे-शक वो तू लगे सरमस्त हम हैं और वो मैं-पन में मस्त है मेरा 'शफ़ीक़' क्यों वो भला हम-सुबू लगे