हर गुज़रता पल नया इक मसअला देता गया हर गुज़रता दिन नए ग़म का पता देता गया तपते सहरा से तमन्ना छाँव की बे-सूद थी हम कि चलते ही गए वो आबला देता गया दश्त-ए-फ़ुर्क़त जान-लेवा हो गया उस दम मुझे इक तसव्वुर आप का बस हौसला देता गया मुब्तला-ए-गर्दिश-ए-हालात मैं जब जब हुआ मुझ को साया अपनी रहमत का ख़ुदा देता गया बस ये एजाज़-ए-मोहब्बत था कि मेरी क़ब्र पर संग-दिल से संग-दिल भी फ़ातिहा देता गया वस्फ़-ए-फ़न्न-ए-शाइरी मिलता गया जूँ जूँ मुझे मैं भी था फ़य्याज़ बस लेता गया देता गया अल्लह अल्लह नज़्अ' का आलम था लेकिन वो 'हबीब' जाते जाते मुझ को जीने की दुआ देता गया