हम को दर्स-ए-उल्फ़त-ओ-मेहर-ओ-वफ़ा देते हुए ख़ुद को परखा आप ने ये मशवरा देते हुए है बहुत बेज़ार अपनी ज़िंदगी से वो मगर जा रहा है सब को जीने की दुआ देते हुए फ़ैसला इक है गुनह का जब किया उस ने ग़लत काँप उट्ठा हाथ मुंसिफ़ का सज़ा देते हुए परवरिश होती है बच्चे की ये उस की शान है किस ने देखा बत्न-ए-मादर में ग़िज़ा देते हुए चीर कर दरिया का सीना बे-ख़तर उतरे हैं पार हादसे गुज़रे हैं हम को रास्ता देते हुए बाप के आँसू न थमते थे अजब मंज़र था वो क़ब्र पर बेटे की अपने फ़ातिहा देते हुए हिल नहीं सकते यहाँ से चाहे मदफ़न ही बने हम नहीं वो जो चले जाएँ सदा देते हुए मैं कि शश्दर रह गया साक़ी की हरकत देख कर जाम लाया और आगे बढ़ गया देते हुए जब तुम्हें फ़ुर्सत मिले तो शौक़ से आओ 'हबीब' हँसते हँसते कह दिया उस ने पता देते हुए