हर ज़बाँ पर है गुफ़्तुगू तेरी है हर इक दिल में आरज़ू तेरी मेहर-ओ-मह दोनों तुझ से शश्दर हैं ये तजल्ली है चार-सू तेरी मय से ऐ शैख़ गर तहारत कर आबरू हो दम-ए-वुज़ू तेरी ज़ुल्फ़ सुम्बुल है और कमर रग-ए-गुल है ये तारीफ़ मू-ब-मू तेरी गुल न फूलें समाए जामे में गर सबा से वो पाएँ बू तेरी लाई आहू को दाम में गोया आँख पर ज़ुल्फ़-ए-मुश्कबू तेरी दुर-ए-दंदाँ पे तो फ़िदा 'अहक़र' चश्म-ए-गिर्यां है आबरू तेरी