हर कड़े वक़्त पे आईना दिखाया है मुझे ज़िंदगी तू ने बड़े प्यार से बरता है मुझे बढ़ के चूमे हैं ग़म-ए-इश्क़ ने भी मेरे क़दम ग़म-ए-दौराँ ने भी आँखों पे बिठाया है मुझे राह-ए-पुर-पेच पे है ज़ुल्फ़-ए-रसा का धोका दश्त-ए-आग़ोश-ए-तमन्ना नज़र आया है मुझे अपने ग़म-ख़्वार के अश्कों को तका करता हूँ गर्दिश-ए-वक़्त ने पलकों पे सजाया है मुझे अब किसी दर्द का शिकवा न किसी ग़म का गिला मेरी हस्ती ने बड़ी देर में पाया है मुझे मैं ग़म-ए-दहर की चादर में छुपा बैठा था रात भर आ के तिरी याद ने ढूँडा है मुझे