हर कली ख़ून में नहाई है कैसे समझूँ बहार आई है बाल-ओ-पर हो चुके हैं नज़्र-ए-क़फ़स ये रिहाई कोई रिहाई है तेरे ग़म को लगा के सीने से मेरी तक़दीर मुस्कुराई है बज़्म रौशन है आप के दम से आप ने शम्अ क्यों जलाई है तेरी हल्की सी मुस्कुराहट से महफ़िल-ए-ज़ीस्त जगमगाई है क्या बताएँगे तेरे दीवाने क्या बुराई है क्या भलाई है जब भी उट्ठा नक़ाब-ए-हुस्न 'ज़मीर' महफ़िल-ए-इश्क़ जगमगाई है आज तू ने 'ज़मीर'-ए-ख़ुद-आगाह कितनी अच्छी ग़ज़ल सुनाई है