जो अपना बन न सके उस से क्या शिकायत हो गिला तो उस से करें जिस से कुछ रिफ़ाक़त हो अजीब दोग़ले किरदार का वो मालिक है जो सब से कहता है तुम आख़िरी मोहब्बत हो बस इस लिहाज़ से बे-शक अना-परस्त हैं हम हम ऐसी बज़्म में जाते हैं जिस में राहत हो मैं इस नतीजे पे पहुँची हूँ देख कर दुनिया वो प्यार प्यार नहीं जिस में बस तिजारत हो त'अल्लुक़ात हैं महदूद मेरे 'ज़र्क़ा-नसीम’ उसी से मिलती हूँ मैं जिस में कुछ शराफ़त हो