हर लम्हा बे-शर्म सवाली लगता है जीना अब तो माँ की गाली लगता है जब से पेट पे पाँव रखा है दुनिया ने हम को दिल का दर्द ख़याली लगता है दफ़्न है दिल के साथ न जाने क्या क्या कुछ सीना लेकिन ख़ाली ख़ाली लगता है अक्स-ए-अक्स है आईना-दर-आईना फिर भी यहाँ हर शख़्स मिसाली लगता है अब वो आलम हम पे नहीं आने वाला सूखा दश्त भी जब हरियाली लगता है आख़िर-आख़िर हासिल-ए-जाँ ओ हासिल-ए-दिल बस पामाली ही पामाली लगता है