हर मंज़िल में हर रस्ते में सच अपने काम आया है हम ने झूटे लोगों को अक्सर घर तक पहुँचाया है वा'दा-शिकन वो लाख सही पर मुझ को हैराँ करने को कभी कभी तो मुझ से मिलने वा'दे पर भी आया है चश्म-ए-तमाशा भी शर्मिंदा हैरत में आईने भी वक़्त की धूप ने कैसा कैसा चेहरों को झुलसाया है वो जो दिया रौशन ही नहीं है उस के लिए रहमत कैसी क्यूँ ये तेज़ हवा का झोंका घर में मिरे दर आया है हम भी अब से ब-क़ौल-ए-'हाली' दुनिया को झुटलाएँगे आज तलक इस दुनिया ने हम सच्चों को झुठलाया है किस ख़ामोशी से पल्टी है 'ख़ावर' वो मौज-ए-दरिया जिस मौज-ए-दरिया ने मुझ को साहिल पर पहुँचाया है