हर-नफ़स बार-ए-गराँ जिस के असर से गुज़रे ये न हो फिर वही तूफ़ान इधर से गुज़रे ख़ुद-फ़रेबी-ए-तलब कहती रही जिस को वतन अजनबी हम रहे जिस राहगुज़र से गुज़रे ख़ैर-मक़्दम को जहाँ सोचा था दुनिया होगी देखा तक भी न किसी ने जब उधर से गुज़रे जिस में कुछ भी नहीं इज़हार-ए-तअस्सुफ़ के सिवा हम अब ऐसे सफ़र-ए-अज़्म-ए-सफ़र से गुज़रे जज़्बा-ए-दिल वो नहीं जिस में कशाकश ही हो मौज-ए-दिल क्या न तलातुम न भँवर से गुज़रे ना-शनास-ए-दिरम-ओ-नर्ख़ मिले लोग 'ज़ुबैर' लिए सरमाया मोहब्बत का जिधर से गुज़रे