हौसला भी दिया हर सफ़र में सदा तल्ख़ लहजा रहा बस नज़र में सदा वक़्त जैसा भी अच्छा-बुरा जो भी था साथ उस ने दिया हर सफ़र में सदा टूट कर मैं कभी जो बिखरने लगी तो सहारा दिया हर डगर में सदा उन के चेहरे से हम कुछ समझ न सके ग़म छुपाते रहे वो जिगर में सदा मर्तबा बाप का क्या लिखें 'आइशा' धूप भी छाँव है इस शजर में सदा