हर क़दम तेरी रहगुज़र में है मेरी मंज़िल मिरी नज़र में है ज़िंदगी सरहद-ए-ख़तर में है मंज़िल-ए-आख़िरी नज़र में है ज़िंदगी हम-रिकाब हो कब तक आदमी मौत के सफ़र में है इश्क़ अगर है मिरी रग-ओ-पै में हुस्न मेरी नज़र नज़र में है इस का इक़रार खुल के हो कि न हो दिल मगर हिर्स-ए-माल-ओ-ज़र में है कोई सय्याह ही बताएगा लुत्फ़ जो सैर में सफ़र में है शद्द-ओ-मद से है आज भी जारी वो तसादुम जो ख़ैर-ओ-शर में है बन गया है बला-ए-जान-ए-क़ौम एक सौदा जो अहल-ए-शर में है हुस्न जिस शय का नाम है यारो देखने वाले की नज़र में है दर्द-ए-सर है वतन का हर अख़बार सनसनी सी हर इक ख़बर में है रंग ही रंग हैं निगाहों में हाए क्या बात हम-सफ़र में है जज़्बा-ए-ख़ैर अब कहाँ 'मग़मूम' शर ही शर आज के बशर में है