हर रग-ए-ख़ार की तहवील में ख़ूँ है मेरा बे-कराँ दश्त दबिस्तान-ए-जुनूँ है मेरा नक़्श-ए-मौहूम है सब वुसअत-ए-अर्ज़-ओ-अफ़्लाक मेरे शहपर के तले सैद-ए-ज़बूँ है मेरा शाख़ें तलवार की सूरत हैं गुल-ओ-बर्ग हैं संग दिल का ये नख़्ल गिरफ़्तार-ए-फ़ुसूँ है मेरा ज़ख़्म क्या है किसी शमशीर-ए-निगह का एजाज़ अश्क क्या है समर-ए-फ़स्ल-ए-दरूँ है मेरा हिज्र का चाँद दहकता हुआ अँगारा सही मगर इस से भी कहीं शोला फ़ुज़ूँ है मेरा सब मिरे दिल पे करम उस निगह-ए-नाज़ का है बे-क़रारी है मिरी और न सुकूँ है मेरा ग़म का ज़हराब रग ओ पय में जो उतरा 'इशरत' तब ये मालूम हुआ मुझ को वो क्यूँ है मेरा