हसीन आँखों में पलते हुए से डर देखे कि हम ने जलते हुए तितलियों के पर देखे बला की धुंद थी कुछ भी नज़र न आता था अँधेरे फैलते हम ने नगर नगर देखे सदफ़ की बात है क्या वो गुहर भी पाएगा उतर के गहरे समुंदर में वो अगर देखे वो आग क्या थी जो भड़की थी क्यों ख़ुदा जाने कि हम ने जलते हुए बस्तियों में घर देखे न जानें दर्द हमारा न देखें ज़ख़्म-ए-जिगर अजीब तरह के कुछ हम ने चारागर देखे किनारे कश्ती को ले जाए नाख़ुदा क्यूँकर कि हम ने लहरों में उठते हुए भँवर देखे वो ख़्वाब कितना भयानक था चीख़ उट्ठा मैं लहू में हाथ जो अपने ही तर-ब-तर देखे रह-ए-हयात में जो अपना साथ छोड़ गए कुछ इस तरह के भी ऐ 'राज' हम-सफ़र देखे