जीवन तपती रीत का थल सोने का धोका पीतल तेरा बदन और ताज महल सुंदरता के दो सिंबल दुनिया है इक अंधा कुआँ चारों ओर है जल ही जल धूप ने झाँका खिड़की से मच गई कमरे में हलचल पाप धुलेंगे दोनों से मदिरा हो या गंगा-जल देख न भारी पत्थर फेंक दिल है नाज़ुक शीश-महल 'राज' हमीं ने छलकाया अपने लहू से जाम-ए-ग़ज़ल