हसरत सही फ़िराक़ सही बेकली सही इक बेवफ़ा की याद में दीवानगी सही मुमकिन है काम आए बुरा आदमी सही नासेह ये दोस्ती न सही दुश्मनी सही मैं मुतमइन हूँ अपने दिल-ए-पुर-ख़ुलूस पर उन के ख़ुलूस में जो कमी है कमी सही इक पल में उस ने तोड़ दिया रिश्ता-ए-वफ़ा हसरत मिला दी ख़ाक में उस ने रही सही सब कुछ मुझे गवारा है ऐ जान-ए-आरज़ू नज़र-ए-करम सही न सही बरहमी सही 'अम्बर' वो आदमी है बुरा मत कहो उसे वो लाख ना-शनास सही अजनबी सही