हुस्न के सामने हम शम्अ' जलाते कैसे आइना-साज़ को आईना दिखाते कैसे उस का अंदाज़-ए-सितम हम को बहुत रास आया वर्ना दुनिया के सितम और उठाते कैसे लाख चाहा कि मोहब्बत का न इज़हार करें फिर भी चेहरे के तअस्सुर को छुपाते कैसे जिस को मालूम नहीं दिल की तबाही का सबब दास्ताँ उस को मोहब्बत की सुनाते कैसे ये मिरी शोख़-निगाही का असर है 'अम्बर' वर्ना घबरा के वो चिलमन को उठाते कैसे