मिरी आँखों के हर मंज़र की हर तस्वीर में तुम हो मिरी गुफ़्तार में तुम हो मिरी तक़दीर में तुम हो तुम्हें चाहा तुम्हें माँगा तुम्हें दिल में बसाया है मिरे अंदर है जो आबाद उस जागीर में तुम हो बहुत मसरूफ़ रहते हो कभी मिलने नहीं आते न जाने कौन सी उलझी हुई ज़ंजीर में तुम हो मिरे ख़्वाबों में आते हो हक़ीक़त में नहीं आते नहीं मेरे मगर हर ख़्वाब की ता'बीर में तुम हो तुम्हारे वास्ते मैं ने कभी लिखा नहीं कुछ भी मगर जब पढ़ रही हूँ तो मिरी तहरीर में तुम हो हमेशा माँगती हूँ मैं तुम्हें अपनी दुआओं में ख़ुदा का फ़ैसला ये है मिरी तक़दीर में तुम हो