हवा और बादबाँ दोनों मुझे प्यारे बहुत हैं मोहब्बत के निशाँ दोनों मुझे प्यारे बहुत हैं परिंदे और शजर दोनों तुझे सौंपे हैं मैं ने ख़ुदा-ए-मेहरबाँ दोनों मुझे प्यारे बहुत हैं मुझे ग़फ़्लत के सन्नाटे से ले आते हैं बाहर ये तकबीर-ओ-अज़ाँ दोनों मुझे प्यारे बहुत हैं कोई ज़ुल्मत का दुश्मन है तो कोई धूप में दोस्त चराग़ और साएबाँ दोनों मुझे प्यारे बहुत हैं उधर सूरज चमकता है उधर पकती हैं फ़स्लें ज़मीन-ओ-आसमाँ दोनों मुझे प्यारे बहुत हैं सुख़न लिखना सिखाया है मुझे दोनों ने 'शौकत' यक़ीं हो या गुमाँ दोनों मुझे प्यारे बहुत हैं