हवा महक उठी रंग-ए-चमन बदलने लगा वो मेरे सामने जब पैरहन बदलने लगा बहम हुए हैं तो अब गुफ़्तुगू नहीं होती बयान-ए-हाल में तर्ज़-ए-सुख़न बदलने लगा अंधेरे में भी मुझे जगमगा गया है कोई बस इक निगाह से रंग-ए-बदन बदलने लगा ज़रा सी देर को बारिश रुकी थी शाख़ों पर मिज़ाज-ए-सोसन-ओ-सर्व-ओ-समन बदलने लगा फ़राज़-ए-कोह पे बिजली कुछ इस तरह चमकी लिबास-ए-वादी-ओ-दश्त-ओ-दमन बदलने लगा