नहीं ख़स्ता-हाली पे ना-मुतमइन हम यही टाट मख़मल यही टाट रेशम हम अच्छी तरह जानते हैं ये नासेह कि सच्चाई का अज्र है साग़र-ए-सम किसी हाल में भी रखे रखने वाला भला दहर में क्या ख़ुशी और क्या ग़म नहीं अपनी ग़ाएब-दिमाग़ी पे हैरत मोहब्बत में होता है अक्सर ये आलम कोई शोर सा दिल में रहता है बरपा दमा-दम दमा-दम दमा-दम दमा-दम रहे तज़्किरे अम्न के आश्ती के मगर बस्तियों पर बरसते रहे बम कहाँ चैन से आज दुनिया में कोई ये जन्नत बना दी गई है जहन्नम न गुज़रा कभी एक लम्हा सुकूँ से मोहब्बत में आए वो दिन-रात पैहम