ये क्या कहा कि ग़म-ए-इश्क़ नागवार हुआ मुझे तू ज़ुरअ-ए-तल्ख़ और साज़गार हुआ सरिश्क-ए-शौक़ का वो एक क़तरा-ए-नाचीज़ उछालना था कि इक बहर-ए-बे-कनार हुआ अदा-ए-इश्क़ की तस्वीर खिंच गई पूरी वुफ़ूर-ए-जोश से यूँ हुस्न बे-क़रार हुआ बहुत लतीफ़ इशारे थे चश्म-ए-साक़ी के न मैं हुआ कभी बे-ख़ुद न हुश्यार हुआ लिए फिरी निगह-ए-शौक़ सारे आलम में बहुत ही जल्वा-ए-हुस्न आज बे-क़रार हुआ जहाँ भी मेरी निगाहों से हो चला मादूम अरे बड़ा ग़ज़ब ऐ चश्म सेहर-कार हुआ मिरी निगाहों ने झुक झुक के कर दिए सज्दे जहाँ जहाँ से तक़ाज़ा-ए-हुस्न-ए-यार हुआ