हयात आज गिराँ हो गई सभी के लिए तरस रहा है हर इंसान ज़िंदगी के लिए नशात-ए-ज़ीस्त की तकमील हो नहीं सकती तुम्हारा दर्द ज़रूरी है ज़िंदगी के लिए रिया नुमूद-ओ-नुमाइश कहाँ इबादत में ख़ुलूस-ए-क़ल्ब ज़रूरी है बंदगी के लिए अगर हों क़ल्ब में एहसास के दिये रौशन बहुत से रास्ते मिलते हैं शायरी के लिए सुख़नवरान-ए-दकन मुत्तफ़िक़ हैं सब 'अख़्तर' 'सफ़ी' ग़ज़ल के लिए था ग़ज़ल 'सफ़ी' के लिए