हिज्र दे कर न आज़मा मुझ को चंद लम्हे तू कर अता मुझ को तीरगी आँख से मिटानी है रौशनी आ गले लगा मुझ को मेरे होने से तेरा होना हो अपने पहलू में यूँ बिठा मुझ को तेरा आना भी एक ने'मत है जैसे रहमत ने आ लिया मुझ को मैं दुआ बन के अर्श तक पहुँचूँ अपने होंटों पे यूँ सजा मुझ को फिर निगाहें बदल गईं तेरी फिर अधूरा सा कर दिया मुझ को मैं ने उस को परख लिया 'उश्बा' कोई खटका नहीं रहा मुझ को