हिज्र दे या विसाल दे मुझ को ग़म कोई ला-ज़वाल दे मुझ को भूलती जा रही हूँ मैं सब कुछ और कुछ रोज़ टाल दे मुझ को अपनी सूरत तराश ले मुझ में अब मिरे ख़द्द-ओ-ख़ाल दे मुझ को पहले मुझ को डुबो अँधेरों में फिर किरन सा उछाल दे मुझ को साए जिस की पकड़ में आ जाएँ रौशनी का वो जाल दे मुझ को