होंट पर ख़ामोशियाँ रक्खी हुईं हर्फ़ पर हैं तख़्तियाँ रक्खी हुईं जल रही है रात घर के सहन में ताक़ में हैं बत्तियाँ रक्खी हुईं छू रही हैं रंग मेरी आँख का बोतलों में तितलियाँ रक्खी हुईं झाँकती हैं सब किताबें शेल्फ़ से मेज़ पर हैं उँगलियाँ रक्खी हुईं बह गई हैं गहरे पानी में कहीं साहिलों पर कश्तियाँ रक्खी हुईं झड़ चुके हैं फूल और पत्ते मगर पेड़ पर हैं टहनियाँ रक्खी हुईं