हिज्र की रात और क्या करते तेरे आने की बस दुआ करते हम से तौहीन-ए-इश्क़ हो न सकी किस तरह अर्ज़-ए-मुद्दआ करते उँगलियाँ हो गईं फ़िगार अपनी कितने मक्तूब हम लिखा करते दार पे हम को खींचने वालो हम बहर-हाल हक़ कहा करते जब कि माहौल ही बुरा है 'मुई'न' क्या किसी से कोई गिला करते