हिज्र की रुत में तड़पती-ओ-सिसकती आँखें मुझ से देखी नहीं जातीं ये तुम्हारी आँखें वक़्त-ए-कॉलेज में किताबों के अहाते में घिरी हाए किस तरह मैं भूलूँ वो किताबी आँखें चेहरा ऐसा कि जो देखे कहे सुब्हान-अल्लाह ज़िक्र करते हुए लब हैं तो नमाज़ी आँखें ऐ मुसव्विर कोई तस्वीर बना मुझ जैसी चेहरा हो ग़म का बदल शोर मचाती आँखें मुझ को पलकों पे बिठा कर के ज़मीं-बोस किया या-ख़ुदा ख़ाक वो हो जाएँ फ़रेबी आँखें बाद तेरे जो मुझे देखे कहे ये 'ज़ोया' किस के मातम में हैं ये तेरी ग़िलाफ़ी आँखें