रौशनी बन के अँधेरे पे असर हम ने किया दश्त-ए-तन्हाई से क्या ख़ूब गुज़र हम ने किया बंदिश-ए-हिज्र को तोड़ा नहीं तू ने आ कर याद क्या तुझ को नहीं शाम ओ सहर हम ने किया इक बयाबाँ भी मिला मुंतज़िर-ए-नूर-ए-अज़ल दिल की वीरानी को जब पेश-ए-नज़र हम ने किया और कुछ हो न सका सूरत-ए-दरमाँ लेकिन अपना दामन तो सर-ए-दीदा-ए-तर हम ने किया दर्द के मारे हुए लोग थे ख़्वाबों के क़रीब कैसे नादीदा ज़मानों का सफ़र हम ने किया हम ने देखा है वहाँ फिर भी उजाला 'राशिद' साथ रहते हुए सब के जहाँ घर हम ने किया