हिना ये कहती है लो बे-ज़बान पा के मुझे जब आए आप गए चोरियाँ लगा के मुझे न देखते थे कभी जो नज़र उठा के मुझे वो देखते हैं दम-ए-हश्र मुस्कुरा के मुझे हिना ये कहती है उन से सुना सुना के मुझे नहीं शहीदों में मिलना लहू लगा के मुझे निगह से बढ़ के हैं गुस्ताख़ दस्त-ए-शौक़ मिरे न कोसिएगा ज़रा हाथ उठा उठा के मुझे मिरा रक़ीब मुझी सा रखा दिया मुझ को निकाली छेड़ की शक्ल आइना दिखा के मुझे दुहाइयाँ हैं शब-ए-वस्ल अपनी शोख़ी से कि लूटे लेते हैं जोबन हसीन पा के मुझे ज़रा से दर्द ने ढाई हैं आफ़तें क्या क्या पटक दिया है ज़मीं पर उठा उठा के मुझे कहा जो उन से चराग़-ए-लहद जलाते जाओ हवा से तेज़ गए वो हवा बता के मुझे कनार-ए-ग़ैर में रातें तड़प तड़प के कटीं रहे न चैन से वो क़ब्र में सुला के मुझे सबा न दाग़ लगा तू ये अपने दामन को कहेगी शम-ए-लहद क्या मिला बुझा के मुझे मैं अपने ख़ून का बेड़ा उठाऊँ ख़ुद क्यूँकर वो पान देते हैं शोख़ी से मुस्कुरा के मुझे उरूस-ए-गोर के पहलू में चैन पाऊँगा वही सुलाएगी आग़ोश में दबा के मुझे कहा था किस ने कि लाखों के दिल करो पामाल जो कह रहे हो कि लाले पड़े हिना के मुझे निकाल दूँगा शब-ए-वस्ल बल नज़ाकत के डरा लिया है बहुत तेवरियाँ चढ़ा के मुझे मना लिया तिरे रूठे हुए को ज़ालिम ने हँसा दिया तिरे नावक ने गुदगुदा के मुझे ये हाथ बाँध के कहता है दिल के ज़ख़्म का चोर हुज़ूर याद हैं सब हथकंडे हिना के मुझे वो आ के शर्म से कहते हैं मेरी तुर्बत पर न देखे सब्ज़ा-ए-ख़्वाबीदा सर उठा के मुझे ये क्या मज़ाक़ फ़रिश्तों को आज सूझा है हुजूम-ए-हश्र में ले आए हैं बुला के मुझे मिटे हुओं के मिटाने को ये भी आँधी हैं रहेंगे नक़्श-ए-क़दम ख़ाक में मिला के मुझे कहूँगा हश्र के छोटे से दिन में क्या क्या बात बहुत ही हौसले हैं अर्ज़-ए-मुद्दआ के मुझे क़यामत और क़यामत में आई क़हर हुआ बुतों ने छेड़ दिया सामने ख़ुदा के मुझे अदा-शनासों को मरते भी बन नहीं पड़ती पयाम आते हैं कब से मिरी क़ज़ा के मुझे सताने वालो क़यामत भी आई जाती है जफ़ा के लुत्फ़ तुम्हीं आएँगे वफ़ा के मुझे तमाम उम्र के शिकवे मिटाए जाते हैं वो देखते हैं दम-ए-नज़अ' मुस्कुरा के मुझे कहाँ वो नूर की सूरत वो नूर की आवाज़ 'रियाज़' कौन सुनाए ग़ज़ल ये गा के मुझे