सज्दा-गाह-ए-अहल-ए-दिल बा'द-ए-फ़ना हो जाइए सफ़्हा-ए-हस्ती पे इक नक़्श-ए-वफ़ा हो जाइए पा-ए-ख़ुद-रफ़्ता भी हासिल ज़ौक़-ए-बेहद भी नसीब रहनुमा क्यों ढूँडिए ख़ुद रहनुमा हो जाइए शम्अ'-सूरत एक दिन जलना है अपनी आग में लज़्ज़त-ए-सोज़-ए-दरूँ से आश्ना हो जाइए बंदिश रंज-ओ-अलम फ़िक्र-ए-अजल क़ैद-ए-हयात दर्स-ए-उल्फ़त लीजिए सब से रिहा हो जाइए जज़्बा-ए-उल्फ़त की क़ीमत दोनों आलम भी नहीं दीजिए दिल बे-नियाज़-ए-मुद्दआ हो जाइए ज़िंदगी वो है करें वो जिस पे तकमील-ए-सितम यूँ बसर कीजे कि उन का मुद्दआ' हो जाइए कुछ न होने पर जहाँ को दर्द-ए-इबरत दीजिए ख़ल्क़ में इक पैकर-ए-इबरत-नुमा हो जाइए मिल ही जाएगी कहीं 'हिरमाँ' फ़ज़ा-ए-पुर-सुकूँ इस जहान आब-ओ-गिल से तो जुदा हो जाइए