हिर्स-ए-दुआ न हो हवस-ए-इल्तिजा न हो उल्फ़त का जब मज़ा है कोई मुद्दआ' न हो तू उन की बेवफ़ाई पे शिकवा-सरा न हो क़द्र-ए-वफ़ा न हो वो अगर बेवफ़ा न हो तस्वीर बन के देख ब-आदाब-ए-दीद उन्हें जुम्बिश न हो निगाह को दिल बोलता न हो आसूदगान-ए-ऐश बताएँ वो क्या करे जिस को ब-क़द्र-ए-हौसला ग़म भी मिला न हो ऐ बे-ख़ुदी ख़ुदी की तरफ़ आँख फेर दे देखें कहीं हिजाब-ए-ख़ुदी में ख़ुदा न हो इस वक़्त शायद उन का पता मिल सके तुझे जब तेरा अपनी हस्ती की हद तक पता न हो इज़हार-ए-मुद्दआ हो 'शिफ़ा' इस अदा के साथ दस्त-ए-दुआ' भी वाक़िफ़-ए-नफ़स-ए-दुआ न हो