हिसार-ए-दुश्मन-ए-जाँ से निकल के चले हैं हम भी अब रस्ते बदल के अयाँ सा हो गया है हर किसी पर तिरा जोबन मिरे शे'रों में ढल के मिरी धड़कन का बजता साज़ भी तुम तुम्ही ए'जाज़ हो मेरी ग़ज़ल के भँवर ने आ लिया है कश्तियों को ये नज़्ज़ारे हैं आँखों में अजल के जिन्हें डर हादसाती मौत का हो घरों से वो निकलते हैं सँभल के किसी के साथ जब होता हूँ 'तन्हा' मुझे वो देखता रहता है जल के