हिसार-ए-ज़ात से निकला तो फिर सँभल न सका अना के बोझ से बैसाखियों पे चल न सका सिमट गई जो बिसात-ए-तरब है तेरे बा'द नशात-ए-महफ़िल-ए-याराँ में जी बहल न सका मुसाफ़िरान-ए-रह-ए-शौक़ ये भी याद रहे तिलिस्म-ए-होश-रुबा से कोई निकल न सका तमाम शोरिश-ए-दौराँ तमाम रंग-ए-नशात मैं संग-ओ-ख़िश्त में ख़ुद को मगर बदल न सका 'नदीम' काम न आई वो नुस्ह-ए-ख़ैर-ख़हाँ मैं कज-कुलाह ज़माने के साथ चल न सका