हम लोग इस उम्मीद में घर से निकल आए By Ghazal << इन आँखों से यूँ राह-ए-सुख... हो ही जाता है किसी तरह गु... >> हम लोग इस उम्मीद में घर से निकल आए सूरत कोई मुमकिन है सफ़र से निकल आए इक रौशनी आसेब सी फिरती है सर-ए-दश्त साया सा कोई फिर न शजर से निकल आए कुछ देर यहाँ देख ही लेते हैं ठहर कर शायद वो इसी राहगुज़र से निकल आए Share on: