जब किसी ने हाल पूछा रो दिया चश्म-ए-तर तू ने तो मुझ को खो दिया दाग़ हो या सोज़ हो या दर्द-ओ-ग़म ले लिया ख़ुश हो के जिस ने जो दिया अश्क-रेज़ी के धड़ल्ले ने ग़ुबार जब ज़रा भी दिल पे देखा धो दिया दिल की पर्वा तक नहीं ऐ बे-ख़ुदी क्या किया फेंका कहाँ किस को दिया कुछ न कुछ इस अंजुमन में हस्ब-ए-हाल तू ने क़स्साम-ए-अज़ल सब को दिया किश्त-ए-दुनिया क्या ख़बर क्या फल मिले तुख़्म-ए-ग़म हम ने तो आ कर बो दिया ये भी नशा मय-कशो कुछ कम नहीं दे न दे साक़ी प तुम समझो दिया 'शाद' के आगे भला क्या ज़िक्र-ए-यार नाम इधर आया कि उस ने रो दिया ज़ुमरा-ए-अहल-ए-क़लम में लिख के नाम ख़ुद को नाहक़ 'शाद' तू ने खो दिया