हो प्यास सलामत मय-ए-गुलफ़ाम बहुत है मय-ख़ाना बहुत साक़ी बहुत जाम बहुत है इन ताफ़ता ज़ुल्फ़ों को परेशाँ न करो तुम ऐ जान-ए-सितम गर्दिश-ए-अय्याम बहुत है क्यों तूर पे मौक़ूफ़ हो बारान-ए-तजल्ली इस जल्वा-ए-ताबाँ के लिए बाम बहुत है इक वो हैं कि हर ज़ुल्म रवा उन के लिए है इक आह भरी मैं ने तो कोहराम बहुत है आज़ादी-ए-परवाज़ पे इतरा नहीं बुलबुल गुलशन की फ़ज़ाओं में अभी दाम बहुत है कुछ सोच के अमवाज-ए-तलातुम में पड़ा हूँ ये सच है कि साहिल पे तो आराम बहुत है आसान नहीं जादा-ए-इरफ़ान-ए-मोहब्बत हर गाम रह-ए-शौक़ में इबहाम बहुत है क्यों मुझ को सदा देता है अफ़्लाक से हातिफ़ इस अंजुमन-ए-गुल में अभी काम बहुत है मत बेच इसे मिस्र का बाज़ार सजा कर इस यूसुफ़-ए-हस्ती का 'सहर' दाम बहुत है