हो तरक़्क़ी पर मिरा दर्द-ए-जुदाई और भी और भी ऐ बेवफ़ा कर बेवफ़ाई और भी होने पाया था अभी ख़ूगर न दर्द-ए-हिज्र का आग रश्क-ए-ग़ैर ने दिल में लगाई और भी देखिए मुड़ कर निगाह-ए-नाज़ के क़ुर्बान मैं एक बार ऐ फ़ित्ना-गर जल्वा-नुमाई और भी फ़ाएदा क्या ऐसे हरजाई से मिलने में 'फ़रोग़' हो गई दुनिया में तेरी जग-हँसाई और भी