होते रहे हैं रद्द-ओ-बदल इस ज़मीन पर

होते रहे हैं रद्द-ओ-बदल इस ज़मीन पर
खंडर भी बन गए हैं महल इस ज़मीन पर

परवाज़ पर हो आज उड़ो आसमान में
आना पड़ेगा लौट के कल इस ज़मीन पर

मरने के बा'द हो कि न हो स्वर्ग और नर्क
बोओगे जैसा पाओगे फल इस ज़मीन पर

इस आज को पकड़ के वसूलो हर एक पल
आएगा ये न लौट के कल इस ज़मीन पर

शीशे सा तेरा दिल है ज़रा साफ़ रख इसे
बन जाएगा ये शीश-महल इस ज़मीन पर

अंजाम इश्क़ का है जुदाई यक़ीन कर
बतला रहा है ताज-महल इस ज़मीन पर

हम से कहा गया न 'नया' शे'र एक भी
आई उतर के ख़ुद ही ग़ज़ल इस ज़मीन पर


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