हम तो उट्ठेंगे उसी राह पे चलने के लिए वक़्त लगता है मगर कर के सँभलने के लिए साज़ बेचैन है हर दर्द उगलने के लिए नग़्मे बे-ताब हैं तारों से निकलने के लिए कोई ऊँचाई पे रहता नहीं दुनिया में सदा रोज़ सूरज भी निकलता है तो ढलने के लिए कुछ न कुछ कीजिए हुजरों से निकल कर अपने वाइ'ज़ो क़ौम की क़िस्मत को बदलने के लिए हर तरफ़ आग है नफ़रत की वतन में फैली सिर्फ़ हम लोग हैं इस आग में जलने के लिए हम जहाँ रहते हैं उस शहर की तारीफ़ सुनो हर मुसीबत यहाँ आती है न टलने के लिए अपना माहौल भी बदला नहीं अपने हाथों हम तो निकले थे ज़माने को बदलने के लिए एक मूज़ी ही नहीं हम को निगलने वाला उस के अज़दर भी तो हैं हम को निगलने के लिए फूल खिलते ही गुलिस्ताँ में अचानक ऐ 'ज़िया' हाथ बढ़ते हैं फ़क़त उन को मसलने के लिए