हम हुए सारे ज़माने से ख़फ़ा तेरे लिए ज़ुल्म क्या क्या न सहे जान-ए-अदा तेरे लिए तेरे परवाने की जाँ ले के रहा वो आख़िर हम ने चाहत का जलाया जो दिया तेरे लिए ख़ुद से बढ़ कर भी कभी हम ने तुझे चाहा है लब पे रौशन रही हर वक़्त दुआ तेरे लिए रात दिन हम ने बहाए हैं लहू के आँसू की है मंज़ूर सिसकने की अदा तेरे लिए दोस्ती तुझ से जो की हो गई दुश्मन दुनिया इश्क़ के नाम पे क्या क्या न हुआ तेरे लिए तेरी हर बात को माना किए हामी भर ली हम हुए पैकर-ए-तस्लीम-ओ-रज़ा तेरे लिए तेरी ख़ातिर किया समझौता जहाँ से 'हाफ़िज़' हम ने बर्दाश्त की तौहीन-ए-अना तेरे लिए