हम ज़मीं पर आसमाँ बन कर रहे बे-ज़बानों की ज़बाँ बन कर रहे जिन का कोई घर न था और छत न थी उन के सर पर साएबाँ बन कर रहे हल जिन्हों ने जोते दहक़ाँ की तरह सरहदों पर वो जवाँ बन कर रहे हम जहाँ पर थे वहाँ पर उम्र-भर बानी-ए-अम्न-ओ-अमाँ बन कर रहे जिन के अंदर गुम हुईं नदियाँ कई हम वो बहर-ए-बे-कराँ बन कर रहे आज तो उन का फ़ज़ाओं पर है राज कल तलक जो सारबाँ बन कर रहे नेक औलादों की ख़्वाहिश है तो फिर माँ से कह दो वो भी माँ बन कर रहे