हम जो इक बार तिरे रुख़ की झलक देखते हैं देर तक लोग फिर आँखों की चमक देखते हैं अब ख़िज़ाओं के तसल्लुत में हैं सब दश्त मगर आप के साथ बहारों की कुमक देखते हैं डूब जाते हैं सब आवाज़ की शीरीनी में और हम आप के लहजे की खनक देखते हैं ऐसे लगता है कि वो वस्ल पे आमादा हैं जब रवय्ये में कभी उन के लचक देखते हैं देखना चाहते हैं अच्छे ख़द-ओ-ख़ाल सभी कौन इस दिल में जो होती है कसक देखते हैं तुम समझते हो हमें धुन है सितारों की फ़क़त जब कि हम उन से परे रंग-ए-फ़लक देखते हैं रोक सकते तो नहीं आप को हम 'ज़रग़ोने' हाँ मगर जाते हुए देर तलक देखते हैं