हम कहाँ साज़ पे गाने को ग़ज़ल कहते हैं अपने दुख-दर्द भुलाने को ग़ज़ल कहते हैं वर्ना बे-जान से लफ़्ज़ों की हक़ीक़त क्या है तुझ से मिलने के बहाने को ग़ज़ल कहते हैं ढाल कर तुझ को तख़य्युल के हसीं पैकर में रूठ जाए तो मनाने को ग़ज़ल कहते हैं आप के दिल में उतर जाए तअ'ज्जुब क्या है हम तो रग रग में समाने को ग़ज़ल कहते हैं सर्द जज़्बात में एहसास की चिंगारी से रात-दिन आग लगाने को ग़ज़ल कहते हैं सख़्त चट्टान या संगलाख़ ज़मीं पर 'नाज़िम' प्यार का फूल खिलाने को ग़ज़ल कहते हैं