ख़याल-ओ-ख़्वाब के साँचे में ढल गए हम भी ख़ुशा-फ़रेब-ए-तमन्ना बहल गए हम भी हमीं थे प्यार का सदक़ा उतारने वाले कि हँस के जाँ का लबादा बदल गए हम भी सहर नसीब कहाँ शम्अ हो कि परवाने शब-ए-फ़िराक़ तिरे साथ जल गए हम भी वो क्यों हों तर्क-ए-तअ'ल्लुक़ पे मोरिद-ए-इल्ज़ाम ज़माना देख रहा है बदल गए हम भी लहक उठा लब-ए-लालीं की बात से एहसास वो मेहरबाँ थे ज़ियादा मचल गए हम भी उमड पड़ी थी उदासी नज़र थी बे-क़ाबू तुम्हारा नाम जो आया सँभल गए हम भी न ज़िक्र-ए-कू-ए-मलामत करो कि दीवानो ख़िरद की राह से आगे निकल गए हम भी वही नज़र वही गर्मी वही अदा 'सरमद' उस आइने के मुक़ाबिल पिघल गए हम भी