मुझ को हासिल जो वस्फ़-ए-दुआ हो गया मैं जिधर चल पड़ा रास्ता हो गया नील में जब वो उतरे तो क्या हो गया ज़ो'म-ए-फ़िरऔन टूटा फ़ना हो गया मौत किस की है कब रिज़्क़ है किस क़दर रोज़-ए-अव्वल ही ये फ़ैसला हो गया थाम लूँगा मैं उस दिन अनान-ए-जहाँ मेहरबाँ मुझ पे जिस दिन ख़ुदा हो गया एक इक करके मोहरे सभी पट गए उन की बाज़ी का यूँ ख़ात्मा हो गया याद-ए-रब और ज़िक्र-ए-हबीब-ए-ख़ुदा रोज़-ओ-शब ये मिरा मश्ग़ला हो गया मैं जो पहुँचा 'हबीब' अपने आक़ा के दर मुझ पे लुत्फ़-ए-शह-ए-दो-सरा हो गया