हम को याद-ए-यार में हासिल जो तन्हाई हुई टूट कर बरसी घटा जो दिल पे थी छाई हुई ज़िंदगी जब से तिरी मेरी शनासाई हुई तू तमाशा बन गई और मैं तमाशाई हुई आएँगे सावन में साजन ले के आई है नवेद बे-वज्ह फिरती नहीं पुरवाई बौराई हुई आप इतना तो समझने की कभी ज़हमत करें आप की भी मेरी रुस्वाई से रुस्वाई हुई जाग उट्ठे आज लो फिर इश्क़ के सोए नसीब ज़िंदगी फिर आज उस बुत की तमन्नाई हुई छुप गए हैं माह-ओ-अंजुम हर तरफ़ है ख़ामुशी आ भी जा ऐ याद-ए-रफ़्ता अब तो तन्हाई हुई इस क़दर मज़बूत है आईन-ए-उल्फ़त की गिरफ़्त कह नहीं पाती ज़बाँ पर बात भी आई हुई रात आए तो न जाने किस तरह गुज़रे 'नज़र' है तबीअत शाम ही से आज घबराई हुई