इन आँखों से यूँ राह-ए-सुख़न वा नहीं करते ख़ामोश रहा करते हैं बोला नहीं करते अंदेशा-ए-तूफ़ान-ए-बला-ख़ेज़ बहुत है इस वास्ते हम क़तरे को दरिया नहीं करते पर्वा नहीं कुछ उन को हमारी तो हमें क्या रुख़ उन की तरफ़ हम भी ज़ियादा नहीं करते ग़र्क़ाबी का इतना ही अगर डर है तो ये लोग क्यों साहिल-ए-दरिया से किनारा नहीं करते बस क़तरा-ए-ख़ूँ से उभर आते हैं कई रंग हम सीने पे ख़ुद बाग़ लगाया नहीं करते