हम ने माना कि तग़ाफ़ुल तेरी आदत है ज़रूर तेरी उफ़्ताद में शोख़ी-ओ-शरारत है ज़रूर यूँ तो उस ने किया इज़हार-ए-नदामत है ज़रूर ऐसा लगता है कोई इस में शरारत है ज़रूर ग़ैर से सुन के मिरा हाल तअस्सुफ़ से कहा जो ये सच है तो बुरी चीज़ मोहब्बत है ज़रूर वाक़िआ' ये है कि इंसान है मजबूर महज़ सानेहा ये है कि मुख़्तार कहावत है ज़रूर बादा-ख़्वारों में कोई बात तो है ऐ साक़ी उन के दम से तिरे मयख़ाने की ज़ीनत है ज़रूर