हम ने तो उजाड़ और बस्ती देखी दुनिया की सभी बुलंद और पस्ती देखी सूरत पे ख़याल अपनी आया जिस दम यक लहज़ा हबाब-वार पस्ती देखी कितनों के मआश की दुरुस्ती देखी कितनों की ब-ख़ाना फ़ाक़ा-मस्ती देखी दुनिया है बसान क़हबा ख़ुश-दिल ग़मगीं रोती है कभी कभी तो हँसती देखी जिस दस्त की मैं दराज़-दस्ती देखी इस दस्त की आख़िरश शिकस्ती देखी जिस ने बस्तम किया मकाँ को ता'मीर दीवार फिर उस मकाँ की खिसकती देखी बा-वस्फ़ अयाँ है लेक बा'ज़ी ख़िल्क़त इस शोख़ की दीद को तरसती देखी ये तुर्फ़ा है माजरा कि काबा-ए-दिल में 'आफ़रीदी' की हम ने बुत-परस्ती देखी